By HARSHIT KACHHAP
आज से लगभग डेढ़ सौ साल पहले, सन् 1857 के सिपाही विद्रोह से भी पहले एक विद्रोह हुआ था जिसमें लगभग 30,000 (60,000 Wikipedia के मुताबिक) नागरिक सेना ने अंग्रेजों के दमन के खिलाफ विद्रोह किया था। हम बात कर रहे हैं 30 जून 1855 को शुरु हुआ संथाल विद्रोह की जिसे चार संथाली भाइयों ने शुरू किया था। सिद्धू कानू चांद भैरव इन चारों भाइयों ने मिलकर अंग्रेजों के जमीदारी प्रथा के खिलाफ विद्रोह किया जिसमें हजारों आदिवासियों ने अपनी जान की कुर्बानी दी।
Battle of plassey 1757 के बाद आदिवासी बहुल क्षेत्र जो कि अब झारखंड में है अंग्रेजों के अधीन हो गया था। जहां पर कर एवं लगान वसूल करने के लिए अंग्रेजों ने एक खास व्यवस्था का संचालन किया। इस व्यवस्था का नाम था जमींदार सिस्टम। यह जमीनदारी सिस्टम लॉर्ड कॉर्नवालिस के परमानेंट सेटेलमेंट एक्ट के तहत आया। इसमें आदिवासियों की जमीन पर अधिकार छिन गए और उनसे जबरन दुखना लगान वसूल किया जाने लगा। इस ज्यादती के खिलाफ संथाल आदिवासियों ने चुप रहने के बजाय विद्रोह का रास्ता चुना। संथाल विद्रोह, हुल विद्रोह के नाम से भी जाना जाता है। हुल विद्रोह में संथाली लोगों ने गोरिल्ला तकनीक का इस्तेमाल किया, अंग्रेजों को अपने क्षेत्र से दूर रखने के लिए। इस गोरिल्ला तकनीक में जंगलों से छुपकर दुश्मन पर वार किया जाता है। अपने पारंपरिक हथियारों से लैस आदिवासियों ने अंग्रेजों पर आत्मघाती हमला किया करते थे। उन्होंने कुछ समय तक अंग्रेजों को अपनी धरती से दूर रखने में सफल भी हो गए और अपना शासन स्थापित किया।
विश्व पर विजय पाने वाली ब्रितानी साम्राज्य चुप कर बैठने वालों में से नहीं थी। ब्रितानी सम्राज्य ने बाहर से युद्ध विशेषज्ञों को बुलाकर इस विद्रोह के दमन के लिए उपाय निकाला। उन्होंने प्रोक्सी फायरिंग करके नागरिक सेना को खदेड़ कर एक विशेष स्थान पर पहुंचाया जहां पर पहले से ही घात लगाए हुए आत्मघाती हथियारों से लैस अंग्रेजों ने उन पर हमला कर दिया। इन हमलों में हजारों लोग शहीद हुए। विकिपीडिया में दिए आंकड़ों के हिसाब से कुल 15000 क्रांतिकारी शहीद हुए पर वास्तव में इससे कई ज्यादा संख्या रही है। इस विद्रोह के सभी दस्तावेज आज भी लंदन में मौजूद है। कई source तो क्रांति के दमन की बर्बर कहानियां भी बयां किए हैं जिसमें ब्रिटिश सेना के द्वारा पुरुषों का कैस्ट्रेशन और महिलाओं के रेप जैसी घटनाएं भी लिखी गई हैं।
लगभग 1 साल तक चला यह क्रांति अंग्रेजों के द्वारा दबा दिया गया पर इस क्रांति का सकारात्मक प्रभाव यह पड़ा कि अंग्रेजों को विवश होकर संथाल परगना टेनेंसी एक्ट लागू करना पड़ा जिसमें आदिवासियों के जमीन का विशेष अधिकार दिया गया। Santhal Pargana Tenancy Act आज भी भारत के संविधान में मौजूद है। जोकि यहां के भोले-भाले आदिवासियों की जमीन के अधिकार की रक्षा कर रहा है। अंग्रेजों के दमन के खिलाफ यह चेतना यहां के आदिवासियों में पहले से ही जाग उठी थी और उन्होंने इस शोषण के खिलाफ आंदोलन किया। पर दुख की बात यह है कि इस आंदोलन का जिक्र ना तो स्कूल के किताबों में ना ही इतिहास के किताबों में कभी किया जाता है।
झारखण्ड की इतिहास की अनसुनी कहानी बयां करता एक पुष्तक । झारखण्ड के बारे में जानना चाहते है तो इससे ज़रूर पढ़े ।

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