इक्सवी सदी में हमने विकाश के दौड़ में बहुत बड़ी छलांग हैं, और इसकी सुरुवात बीसवीं सदी में ही हुई थी, अंतरिक्ष को जानने की इक्षा तो इंसानी सभ्यता में पहले से रही हैं |
लेकिन बीसवीं सदी में हम अंतरिक्ष में पहुंच भी पाय अगर हम कहें की अंतरिक्ष में हमारी अब तक की सबसे बड़ी सफलता चाँद पर इंसान को भेजना हैं तो ये गलत नहीं होगा लेकिन आखिरी बार इंसान को चाँद पर भेजने का मिशन 1972 में हुआ था लेकिन आखिर क्यों इसके बाद कभी भी किसी इंसान को चाँद पर नहीं भेजा गया आखिर इसके पीछे क्या कारन है ?
दरअसल पहली बार इंसानो द्वारा बनाई कोई चीज साल 1959 में चाँद पर पहुंची और इसे सोवियत यूनियन द्वारा बनाया गया था | तभी से अमेरिका और सोवियत यूनियन में दौड़ लग गई अंतरिक्ष में अपने पैर पसारने की |
लेकिन २० जुलाई 1969 को पहली बार नासा ने एक इंसान को चाँद पर भेजा उसके बाद साल 1972 तक 6 मेन मून डिंग कराइ गई, लेकिन इसके बाद अब तक कभी दुबारा इंसान कोचाँद को नहीं भेजा गया |
लगभग 46 साल पहले आखिरी बार इंसान को चाँद पर भेजा गया था जिसमे जो स्मार्ट कंप्यूटर लगा था उसे ज्यादा सक्तिसाली कंप्यूटर तो आज हमारे हाथ में हैं यानि की स्मार्ट फ़ोन, उस वक्त जो तस्वीर सतह पर ली गई वो भी हाई क्वालिटी की नहीं थी तो अब दोबारा क्यों किसी इंसान को चाँद पर नहीं भेजा जाता ? दरअसल इस पर भी कई कॉंसेपुरसी थ्योरी सामने आ रही हैं |
यु ऍफ़ ओ साइटिंग विषज्ञा यों स्टीवन का मानना हैं की चाँद पर उनत सभ्यत निवास करती हैं और इसी बात को छिपाने के लिए दुबारा कभी चाँद पर कोई इंसानी यान नहीं भेजा गया | स्टीवन का मानना है की ये उनत सभ्यता चाँद के बिना रौशनी वाले हिसे में रहती हैं और वह से हम पर नजर रखती हैं |
नासा ने उनके साथ संपर्क बना लिया था इसी लिए हम सब से छिपाने के लिए दोबारा मेन मून लैंडिंग नहीं की गई | नासा के एक पूर्व कर्मचारी का कहना की ये सुच ह की चाँद पर बिना रौशनी वाली जगह पर allien सभ्यता बसती हैं इस बात को नासा द्वारा ही छिपाया जा रहा हैं | इस मुद्दे पर नासा के कर्मचारियों को भी बात नहीं करने दी जाती उनका कहना था आखिरी मेन मून लैंडिंग के समय अंतरिक्ष यात्रियों के पास 3 उडनतस्तरिया भी आई थी जिसकी फोटो को बाद में मिटा दिया गया, उस कर्मचारी के इस इंटरव्यू से हर तरफ खलबली मच गई थी|
जब की एक और कॉंसेपूरी थ्योरी के अनुसार चाँद पर कभी किसी इंसान ने पॉ रखा ही नहीं ये सब नासा का एक झूठ था सोवियत यूनियन के अंतरिक्ष में पहुंचने के बाद नासा पिछड़ रही थी और इसी से बचने के लिए उन्होंने एक झूठ गड़ा | इस थ्योरी का कई और विशेषज्ञों ने भी समर्थन किया था | और उनका भी मानना की उस समय की तकनीक से ऐसा संभव ही नहीं था | दरसल चाँद के ग्रेविटी पृथ्वी से 6 गुना कम हैं यानि 60 किलो ग्राम वजनी चीज चाँद पर सिर्फ 1० किलो ग्राम महसूस होगी, लेकिन फिर भी हम यहाँ से चाँद पर इंसान पहुंचने में इतनी मेहनत लगते हैं और चाँद से दोबारा धरती पैर पहुंचने में भी काफी ईंधन लगता, और ऐसे छमता उस नासा के पास नहीं थी|
जबकि तीसरी थ्योरी के अनुसार आज के समय में ऐसा संभव भी नहीं हैं क्युकी उस समय की मून मिशन की बजट आज के समय में देखे तो एक सौ बिस बिलियन डॉलर बनता हैं उस समय स्पेस की दौड़ में नासा को आगे निकलना था उसी सयोग से उस समय ऐसा संभव हो पाया जबकि अब नासा का सालाना बजट २० बिलियन डॉलर हैं और आज वो नंबर एक पर हैं तो अब उसे भरी सहयोग मिलना भी मुश्किल हैं |
अंत में इनसब थ्योरी से हमारे मैं में यही सवाल उठता है की क्या सुच में नासा ने इंसानो को चाँद पर भेजा था अगर है तो क्या वहां ुनत सभ्यता आज भी बसती हैं ? ये सवाल ज्यादा गहराते हैं क्युकी 46 साल पहले चाँद पर जाया जा सकता था तो आज की हाई तकनीक से ऐसा संभव क्यों नहीं हैं ?


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